हरे बाँस की पतली लम्बी कनैली लाते थे
सफ़ेद कागज को अपने ढंग से सजाते थे
स्कूल की एक टूटी हुई जलेबी के लिए
कितने जोर-जोर से हम नारे लगाते थे
सुबह को अपनी वंदेमातरम् की शोर सुनाते थे
चिड़ियों को इस दिन चहचहाना सिखाते थे
बिना किताब कलम के गुरूजी से मिलते
देश को अपनी सकारात्मक जोश दिखाते थे
हरे बाँस की पतली लम्बी कनैली लाते थे
सफ़ेद कागज को अपने ढंग से सजाते थे
खुदको खुदसे इतिहास याद दिलाते थे
जन गण मन एक लय में गाते थे
स्कूल की एक टूटी हुई जलेबी के लिए
कितने जोर-जोर से हम नारे लगाते थे