सुबह आसमान से वो उतरती
सूरज उसका सुनहरा सा घर
मैयका उसकी ये हमारी धरती
ओस को हर रोज उठाया करती
सजाती वो हर बगीचों की नगर
सुबह आसमान से वो उतरती
हर प्रातः पूरब से निकलती
जाती वो हर शहर - शहर
मैयका उसकी ये हमारी धरती
कभी पेड़ों पे कभी फुलों पे फिसलती
तितली बोलती तू ठहर - ठहर
सुबह आसमान से वो उतरती
बादल और कुहरे से है डरती
लगता किरण को इनसे डर
मैयका उसकी ये हमारी धरती
कलियों को रोज खिलाया करती
उड़ती रहती है किरण बिना पर
सुबह आसमान से वो उतरती
मैयका उसकी ये हमारी धरती