शब्दों का तमाशा देखो
Thursday, May 7, 2015
दीदार की तलब
ये ऑंखें ही तो थी जिसे दीदार की तलब थी,
रो रो कर किसी को पटाने की कोशिश तब थी ,
परदा हटा और चाँद बहार आया ,
लेकिन ऑंखें पूरी बंद अब थी
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