Friday, August 14, 2015

15 अगस्त का प्रसाद

हरे बाँस की पतली लम्बी कनैली लाते थे 
सफ़ेद कागज को अपने ढंग से सजाते थे
स्कूल की एक टूटी हुई जलेबी के लिए 
कितने जोर-जोर से हम नारे लगाते थे  

सुबह को अपनी वंदेमातरम्  की शोर सुनाते थे
चिड़ियों को इस दिन चहचहाना सिखाते थे 
बिना किताब कलम के गुरूजी से मिलते 
देश को अपनी सकारात्मक जोश दिखाते थे 
हरे बाँस की पतली लम्बी कनैली लाते थे 
सफ़ेद कागज को अपने ढंग से सजाते थे

खुदको खुदसे इतिहास याद दिलाते थे
जन गण मन एक लय में गाते थे 
स्कूल की एक टूटी हुई जलेबी के लिए 
कितने जोर-जोर से हम नारे लगाते थे