Saturday, August 8, 2015

farमर


खेती जानते तक नहीं farमर farमर चिल्लाते हैं
मेरे लिये दुःख उनको कुछ होता नही 
बस घडियाली आँसू आँखों से दिखाते हैं 
हमको वो क्या जाने जो बस वोट माँगने आते हैं 
खेती जानते तक नहीं farमर farमर चिल्लाते हैं

खिलवाते हो महँगे साग सब्जियाँ शहर को 
व्यापारियों से मेरा पैसा कब दिलवाओगे
अबकी बार जो झूठे वादे लेकर मेरे गाँव आये
भर पेट फटे जूते खाकर जाओगे 

खेती जानते तक नहीं farमर farमर चिल्लाते हैं
देश का सारा पैसे खाते बस नोटों की फसल उगाते है 
मेरी जब जब बात चलती है 
बूढ़े और जवान सह्ज़ादे एक दूसरे को गाली दे जाते हैं 
खेती जानते तक नहीं farमर farमर चिल्लाते हैं