Friday, April 3, 2015

हर रोज चौराहों पर


हर रोज चौराहों पर वो कहाँ से आता है |
कपड़े नही शरीर पर, वो क्या खाता है |
हर कार,हर शख्स के आगे फैलाता हाँथ 
नन्हे सपूत भारत के इन्हे माँगना कौन सिखाता है |
कुछ पैसे तो होते है शाम होते - होते इनके पास 
लेकिन सुबह होते होते ये पैसा कहाँ जाता है |
हर रोज चौराहों पर वो कहाँ से आता है |
कहते सब हैं अनाथ इनको 
लेकिन बिना माँ - बाप के कौन आता है |
मरने को जिंदगी भर जिंदा कौन छोड़ जाता है |
हर रोज चौराहों पर वो कहाँ से आता है |
लोग सोचते हैं मदद करें, 
लेकिन लोग सोचते हैं मेरा इनसे क्या नाता है ?