Saturday, December 27, 2014

रेंड़ का पेंड़


कितना प्यारा बचपन का वो दौर था 
रेंड़ो के पेड़ों पे जब हरा-हरा अनेक मौर था 
रेड़ी चनक चनक कर गिरती थी रोजाना 
पर पता न चला खजाना में कितना और था