Tuesday, December 30, 2014

अपनी खेत

गावं छोड़ा अपनी खेत याद है 
हरी-हरी फसल और कटाई 
वो उड़ती मिट्टी से रेत याद है 
गावं छोड़ा अपनी खेत याद है 
कलम और कागज से खेलते है 
फिर भी कुदाल की बेंत याद है 
गावं छोड़ा अपनी खेत याद है 

Saturday, December 27, 2014

रेंड़ का पेंड़


कितना प्यारा बचपन का वो दौर था 
रेंड़ो के पेड़ों पे जब हरा-हरा अनेक मौर था 
रेड़ी चनक चनक कर गिरती थी रोजाना 
पर पता न चला खजाना में कितना और था 



Thursday, December 25, 2014

सफ़ेद चादर


सफ़ेद चादर  ताने 
आयी सर्दी रंग दिखाने
अमीर तो अमीर हैं 
गरीबों को कपाने 

Wednesday, December 24, 2014

सकारात्मक बदला

देखो कितना बदल गया है जमाना पर लगता कुछ बदला नही |
हज़ार कहानियाँ पढ़ीं पर किसी में था सकारात्मक बदला नही ||

GAJRA RE GAJRA RE

ek admi gaa rha tha-gajra re gajra re
                                 teri mahkne wali gajra
to ek bhaiyaji bole- arre arrre,gajra re gajra re nhi
                               gana kajra re kajra re hai
to gane wala admi bola-main south Indian ,mere yahan kajra se jayada gajra chalta 

Sunday, December 21, 2014

हरे सांप


अपने बिल से शायद भटके हुए हैं |
पेड़ों से देखो कैसे लटके हुए हैं |
छोटे - छोटे  अनगिनत सहजन 
हरे सांप के जैसे सब अटके हुए है 


Saturday, December 20, 2014

DIN KE TARE


din ke tare 
ye phool sare
na hamare na tumhare
enhe mat todo
ye bagiche mein hi lagte hain pyare

din ke tare 
ye phool sare
par ashiqon se darte hain bechare
kya pta koi ashiq kab phool ka katta sar lekar
aapni mehbuba ko pukare
kya pta kab koi deewana enhe fir mare 

कंचे का कप्तान


सुबह में कुत्तों  को पूंछ पकड़ कौन घुमाता होगा 
अब पुराने चबूतरे पे लट्टू कौन नाचता होगा 
गावं का गँवार आया शहर रोटी के लिए 
बच्चों को गाली में डिग्री अब कौन दिलाता होगा |

अपनी हरकत से सबको कौन बहलाता होगा 
पेंड़ पे चढ़ने की ट्रेनिंग अब कौन दिलाता होगा 
रोटी के लिए,शहर आया कंचे का कप्तान 
नन्हे मुन्नों को गुलेल कौन सिखाता होगा |

खूंटे से बंधी भैंस अब बकरी कौन चराता होगा 
आती होगी बाढ़,बंसी से मछली कौन फंसाता होगा 
नीम पे छोटे-छोटे बहुत सारे निमोड़े आते होंगे 
अपने हाँथ  से अब बिढनी कौन उड़ाता होगा 


Thursday, December 18, 2014

उजली तितली

"छोटी छोटी बर्फ़ पे कविता "

बिना पंख के उड़ रही है 
पेड़ों पे बैठ पेड़ों से जड़ रही है 
खिड़की पे आराम कर रही है 
वो उजली तितली काम कर रही है 

Wednesday, December 17, 2014

कौये घर

काले कौये घर सूत कोयल पला ,सिख पाया न वो कहना कौउ  कौउ  |
पालनहार दिनभर रटाता रहा,कू कू ही निकला जब पूछा अब सुनाओ  ||

Tuesday, December 16, 2014

CHAKKAR MANTRI

do bhaiyaji kisi netaji se milne gye.jinke ghar ke agge likha tha
minister of home affairs.
bhaiyaji1-ye minister of home affairs kya hota hai?
bhaiyaji2-minister matlab mantri,home matlab ghar aur affairs matlab chakkar
               matlab ki  ye CHAKKAR MANTRI HAIN 

Sunday, December 14, 2014

सुनहरी लकीर

धूमिल सा हो रहा है जहाँ
फूलों के झुक गये हैं सिर
सूरज कह रहा है अलविदा
शाम का वक़्त आ गया फिर
आसमान चित्रपटल बना
आसमान ने पहनी है चीर
दिन का राजा अब चला गया  
बनाकर सुनहरी लकीर

Sunday, December 7, 2014

जंग लगे पत्ते


नये नये पत्तों को देखो लग रहा है जंग 
आते जाते गाड़ियों से सब खा रहे हैं  धूल
हरे - हरे पहले थे अब बदल गया है रंग 
नये नये पत्तों को देखो लग रहा है जंग 
हँसते गाते प्रकृति को कब तक करोगे तंग 
भले मानस ये बता किसने की ये भूल ?
नये नये पत्तों को देखो लग रहा है जंग 
आते जाते गाड़ियों से सब खा रहे हैं धूल



Saturday, December 6, 2014

ब्लोग्लोविन

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Friday, December 5, 2014

10Th mein latak gya

teri khubsurat tasweer
aaj ankhon mein atak gya
ye mera dilaaj fir bhatak gya
tujhe dekhte-dekhte..
mere hanthon se kalam chhatak gya
aur sad to say ki eshi karan
tera ye Pappu 10Th mein 2 bar latak gya 

Thursday, December 4, 2014

मक्खी गा रही थी

कानो को तंग कर रहा था एक भद्दा संगीत,
गन्दी मक्खी गा रही थी बहुत बेसुरा गीत,
गुस्से में जोरदार मारा उसे एक झापड़,
जान निकल गयी,बन गया वो पापड़ 

Wednesday, December 3, 2014

कलियों की नगरी







कलियों  की नगरी  में 
भवरों को उलझते देखा 
नादान थे सब के सब 
जिन्हें ख़ुशबू को समझते देखा