Friday, March 14, 2014

सेवानिवृत्त चिट्ठियाँ

फ़ोन इंटरनेट ,मेल ,ईमेल का ज़माना
अब कहाँ बनता है चिठ्ठियों वाला गाना
फ़ोन और फेसबुक से चिपके सब लोग
समय की राह से अब मुश्किल उसका आना

फ़ोन इंटरनेट ,मेल ,ईमेल का ज़माना
अब कहाँ बनता है चिठ्ठियों वाला गाना
लगातार होती है बात अब कहाँ होता है
रूठी पत्नी को एक महीने बाद मनाना

फ़ोन इंटरनेट ,मेल ,ईमेल का ज़माना
अब कहाँ बनता है चिठ्ठियों वाला गाना
फेसबुक से लड़कियों का पीछा करते लोग
अब कहाँ लिखता है चिट्ठी कोई दीवाना

फ़ोन इंटरनेट ,मेल ,ईमेल का ज़माना
अब कहाँ बनता है चिठ्ठियों वाला गाना
ना पोस्टकार्ड न अंतर्देशी मिलती है
ना ही अब कोई मिलता लिखने का बहाना

फ़ोन इंटरनेट ,मेल ,ईमेल का ज़माना
अब कहाँ बनता है चिठ्ठियों वाला गाना
खाली पड़ी है हर डाकिये की हर थैली
जहाँ कभी रहता था भावनाओ का खज़ाना

फ़ोन इंटरनेट ,मेल ,ईमेल का ज़माना
अब कहाँ बनता है चिठ्ठियों वाला गाना
कितनी आगे बढ़ गयी है सारी दुनिया
अब नही होता अपनी अक्षर से अपनी याद दिलवाना

फ़ोन इंटरनेट ,मेल ,ईमेल का ज़माना
अब कहाँ बनता है चिठ्ठियों वाला गाना
मैं "सान " अब और क्या लिखूँ दोस्तों
ये तो चलता ही रहेगा वक़्त के साथ किसी का ठहर जाना