Tuesday, August 19, 2014

कलकल - कलकल गाती निकली

पत्थरों का सर सहलाती निकली 
कलकल - कलकल गाती निकली 
सूखी - सूखी बेजान धरती 
नदी उसको भी नहलाती निकली 

पत्थरों का सर सहलाती निकली 
कलकल - कलकल गाती निकली 
प्यासे मुरझाये से पौधे 
सबको को वो पानी पिलाती निकली 

पत्थरों का सर सहलाती निकली 
कलकल - कलकल गाती निकली 
मछली तड़प रही थी तालाब में 
सरोबर को नदी ,जल खिलाती  निकली 

पत्थरों का सर सहलाती निकली 
कलकल - कलकल गाती निकली 
असमान से बारिस की आस थी 
किसानो को वो हँसी दिलाती निकली