पत्थरों का सर सहलाती निकली
कलकल - कलकल गाती निकली
सूखी - सूखी बेजान धरती
नदी उसको भी नहलाती निकली
पत्थरों का सर सहलाती निकली
कलकल - कलकल गाती निकली
प्यासे मुरझाये से पौधे
सबको को वो पानी पिलाती निकली
पत्थरों का सर सहलाती निकली
कलकल - कलकल गाती निकली
मछली तड़प रही थी तालाब में
सरोबर को नदी ,जल खिलाती निकली
पत्थरों का सर सहलाती निकली
कलकल - कलकल गाती निकली
असमान से बारिस की आस थी
किसानो को वो हँसी दिलाती निकली
कलकल - कलकल गाती निकली
सूखी - सूखी बेजान धरती
नदी उसको भी नहलाती निकली
पत्थरों का सर सहलाती निकली
कलकल - कलकल गाती निकली
प्यासे मुरझाये से पौधे
सबको को वो पानी पिलाती निकली
पत्थरों का सर सहलाती निकली
कलकल - कलकल गाती निकली
मछली तड़प रही थी तालाब में
सरोबर को नदी ,जल खिलाती निकली
पत्थरों का सर सहलाती निकली
कलकल - कलकल गाती निकली
असमान से बारिस की आस थी
किसानो को वो हँसी दिलाती निकली