Sunday, August 31, 2014

GIR GIRKAR

गिर गिर कर संभलते हुए ,
कई बार गिरा चलते हुए ,
किस्मत कई बार बदली ,
पर देखा नही इसे बदलते हुए ,


gir gir kar chalte sambhalte huye
kai bar gira main chalte huye ,
kismat kai bar badali ,
par dekha na kabhi ese badalte huye

Monday, August 25, 2014

धान का गहना

किसान को उसकी मेहनत खेत दे रही है ,
सुनहरे रंग का गहना पहने धान की बाली,
अब फसल कटाई की ओर संकेत दे रही है ,

किसान को उसका फल सूद समेत दे रही है ,
सुनहरे रंग का गहना पहने धान की बाली,
अब फसल कटाई की ओर संकेत दे रही है ,

Saturday, August 23, 2014

धान का मकबरा


गूगल की ये जानी पहचानी सी तस्वीर ,
मेरे अपने बचपन की याद दिलाती है ,
जब जाड़े के दिनों में सूरज देर से उठता था ,
और ठंडी किरण अपने साथ धुंध लाती थी ,
जब चाचाजी धान का मकबरा बनाते थे ,
और भरी खलिहान खेतों की उपज दिखाती थी 

गूगल की ये जानी पहचानी सी तस्वीर ,
मेरे अपने बचपन की याद दिलाती है ,
जब सुबह में पछुआ पवन का असर होता था ,
और धरती ओस की बूंदों से नहाती थी ,
जब चाचाजी एक कारीगर बन जाते थे ,
और धान की फसल एन नई चित्र दिखाती थी ,

गूगल की ये जानी पहचानी सी तस्वीर ,
मेरे अपने बचपन की याद दिलाती है ,
जब सुबह में ठण्ड ठंडक की सुई चुभोता था ,
और दिन कुहरे के संग आती थी,
जब चाचाजी धान का मकबरा बनाते थे ,
और फसल रखने का काम खलिहान निभाती थी 







Friday, August 22, 2014

FIR SE BASANT AYI HAI


hawaon mein romanch ab teji se udane lgi hai
aur mausham mein tazgi samayi hai
dekho aam ke pedon pe manjar fir se ayi hai

dhandhak mein ho rhi hai lgataar kami
aur suraj ne pachhuaa pawan ki kan-kani bhagayi hai        
dekho koyal fir se halke halke gayi hai

kisan ne kisi khet mein genhun
to kisi khet mein gajar lagayi hai
dekho fasal fir se lahlahayi hai

gulab ki manmohak ,beskimati mehak
aur gende ki sejj DHARTI MA ne sajayi hai
dekho bhanti-bhanti ke phool fir se khil ayi hai

kahin bhawre ki prathkaalin mitha sa gunjaar 
aur kahin titliyon ne apne pankhon pe rang lagayi hai
dekho phoolon ka rash lene madhumakhi rani fir se ayi hai 


Fir se basant ayi hai ..............

Word Meaning :
kan-kani =jayada thandh

Dik Ki sehat

chillu -yaar billu jayada sad song mat suna kar ?
billu  -kyon ?
chillu-dil ki sehat par bura asar padta hai
billu  -tab to tere dil mein six pack honge
chillu - wo kaise?
billu  -tu to din bhar romantic gana hi sunta rahta hai na 

Wednesday, August 20, 2014

तेरे बालों जैसी बातें

कुछ सीधी ,कुछ घुँघराली और कुछ घूमी हुई सी 
काली चेहरेवाली ,काली ये सारी की सारी लकीरें 
जब भी लिखता हूँ ,तेरे बालों की याद आती है 

Tuesday, August 19, 2014

कलकल - कलकल गाती निकली

पत्थरों का सर सहलाती निकली 
कलकल - कलकल गाती निकली 
सूखी - सूखी बेजान धरती 
नदी उसको भी नहलाती निकली 

पत्थरों का सर सहलाती निकली 
कलकल - कलकल गाती निकली 
प्यासे मुरझाये से पौधे 
सबको को वो पानी पिलाती निकली 

पत्थरों का सर सहलाती निकली 
कलकल - कलकल गाती निकली 
मछली तड़प रही थी तालाब में 
सरोबर को नदी ,जल खिलाती  निकली 

पत्थरों का सर सहलाती निकली 
कलकल - कलकल गाती निकली 
असमान से बारिस की आस थी 
किसानो को वो हँसी दिलाती निकली

Friday, August 15, 2014

हवाओं के पैर

रेगिस्तान की हल्की पिली रेत ,
अनगिनत लकीरों से सज्जी है ,

हवाओं के पैरों के निशान से ,

शहीदों ने खून दिया

शहीदों ने खून दिया ,
मिट्टी फिर लाल हुई ,
शरीर पे गोली खाई ,
शरीर देश की ढाल हुई ,



Sunday, August 10, 2014

प्याज की पुष्पछत्र

ढेर सारी पुष्प से लदी खेत में 
मधुमक्खीयों की भुनभुनाहट 
उजले सफ़ेद फूल क्षेत्र को देख 
किसान बड़ा ही खुश हो रहा था 

हरी-हरी तना पे गुलदस्ता भेंट में 
बीज के आने की एक आहट 
प्याज की गोल पुष्पछत्र को देख 
किसान बड़ा ही खुश हो रहा था 

Saturday, August 9, 2014

दृष्टी की चोरी

अपने घर में जम्हाई ले रहा है |
उल्लू पेड़ के अन्दर कोटर  में |

सुबह ने उसकी दृष्टी चुरा ली |

पेड़ों के शरीर पे लगी हरी काई

पेड़ों के शरीर पे लगी हरी काई
छोटे - छोटे पौधों के साथ से बनी
पेड़ों को फिर से पोशाक पहनाई
पेड़ों के शरीर पे लगी हरी काई
बरसात ने की ये सुन्दर सिलाई
प्रकृति है कला की बहुत ही धनी
पेड़ों के शरीर पे लगी हरी काई
छोटे - छोटे पौधों के साथ से बनी 

Rat mein Ghulna

Din ki ektrit ki huyi soch
Rat ki nind se mili

Band ankhon mein dekho sapna ayi hai

Thursday, August 7, 2014

दीवारों पे सूखता उपला

एक विचित्र चित्र बनाता है 
गावं की तस्वीर दिखाता है
दीवारों पे सूखता  उपला  

गरीब गावं में नज़र आता है 
दीवार जब गोबर से मार खाता है 
दीवारों पे सूखता  उपला  

चूल्हे को इंधन दिलाता है 
गावं की दीवार पे दिख जाता है 
दीवारों पे सूखता  उपला  

शहर की रंगीन इमारतें 
बस कुछ तस्वीर याद दिलाता है 
मेरा गावं और वहाँ की ...
दीवारों पे सूखता  उपला  

Wednesday, August 6, 2014

KAVITA NIAKALNE NIAKLA

kamre se bhahar nikala andhere se bhra asmaan dekhne ,
Lekin Rat ki khamoshi mein bas akeli chand dikh rhi hai,

Ab Soch rha hoon ,chand kavita ki panktiyaan nikal loon

Tuesday, August 5, 2014

Hari palken

Suraj ki kirano ko dekhne ko
Usane apni hari palken uthayi

Aur ek kali phool ban gyi

Monday, August 4, 2014

फिसलती पलकें

चला गया वो थका हुआ सूरज
अब शोरगुल भी थमने लगी है
रात का मीठा सा एक स्पर्श
दोनों पलकें  फिसलने लगी है



Sunday, August 3, 2014

सूरज की हमशकल

सूरज की जैसे ही दिखनेवाली ,
सूरज को देख सर उठा लेती है ,
शाम के वक़्त जब वो जाता है ,
सूरजमुखी सर झुका लेती है ...

Saturday, August 2, 2014

ANT SE ANANT TAK

hai wo ,ant se anant tak
jaise dori hoti hai
ghaghe se patang tak
wo,har jagah hota hai
rang se satrang tak
jaise bhavnaye hoti hai
gum se umang tak
wo ,hota hai tere sath aaj se kal tak
jaise pani hota hai daldal se badal tak 

Friday, August 1, 2014