Sunday, November 1, 2020

बिहारशरीफ के मेले

वो बिहारशरीफ के मेले, वो चाट के ठेले शाम को पैदल निकल जाना, साथ में नाना वो बूढ़े हम बाल, वो दशहरा का पंडाल बचपन के सुनहरे वो बीते हुए साल वो घर का पकवान, वो जलेबी की दुकान काठ के घोड़े की सवारी, रात को दुखती पैर बेचारी बचपन के सुनहरे वो बीते हुए साल कभी तो ज़िंदगी आ लौट के देख कैसा था ननिहाल