Monday, September 22, 2014

सफ़ेद कबूतर

नीले आसमान में जा रहा था
हवाओं संग तेजी से गा रहा था
धरती बहुत प्यासी थी
वो पौधों के लिए पानी ला रहा था
हवा में उड़ता वो सफ़ेद कबूतर
गगन में कलावाजी दिखा रहा था


किसानो का धन्यवाद पा रहा था
वो अम्बर से गुजरता जा रहा था
धरती की प्यास बुझाकर
वो मस्ती के गोते खा रहा था
हवा में उड़ता वो सफ़ेद कबूतर
गगन में कलावाजी दिखा रहा था