दोस्तों के बीच ये कैसी मारामारी,
ये फेसबुक है होली की ढोल नही,
क्यों दलवाज़ी सोच पनपी रही है,
की भाई मैं बोलूँगा, तू बोल नही,
पहले दिखता था हँसी मजाक,
अब तो दिखता है,(LOL)लोल नही,
कट्टरता हममे तुममे जरुर आयी है,
लेकिन हमसब बकलोल नही,
ये सबको समझने की जरुरत है,
समझाने का अब कोई मोल नही